उत्तरकाशी। स्थानीय उत्पादों से बने प्रसाद को अब तक गंगोत्री यमुनोत्री
में जगह नहीं मिल सकी है। आलम यह है कि दोनों धामों में देश विदेश से आने
वाले श्रद्धालु मैदानों में तैयार होने वाली पूजा सामग्री व प्रसाद मंदिर
में चढ़ाते हैं।
सीमांत जिले के सबसे आखिर में स्थित गंगोत्री यमुनोत्री धाम में दक्षिण भारत में उगने वाला नारियल, मध्य भारत में निर्मित प्रसाद, उत्तर भारत में बनी थालियां आसानी से भक्तों को उपलब्ध हो जाती हैं। लेकिन, स्थानीय उत्पाद और स्थानीय फसलों से बना प्रसाद अब तक यात्रियों की पहुंच से दूर है। हालांकि यात्रा से पहले हर बार स्थानीय उत्पादों को यात्रा पड़ावों पर बिक्री के लिए रखने की सरकारी योजनाएं बनाई जाती हैं। लेकिन, अब तक ये योजनाएं धरातल पर नहीं उतर सकी हैं।
गंगोत्री धाम के प्रमुख पड़ावों में शामिल उपला टकनौर क्षेत्र में बंपर मात्रा में रामदाना (मारछा) का उत्पादन होता है। रामदाना का प्रयोग प्रसाद के रूप में पवित्र भी माना जाता है। ऐसे में रामदाना के लड्डू बनाकर मंदिर परिसर में यात्रियों को बेचने के लिए उपलब्ध करवाने पर उत्पादकों को इसका तीन गुना तक फायदा मिलेगा।।
सीमांत जिले के सबसे आखिर में स्थित गंगोत्री यमुनोत्री धाम में दक्षिण भारत में उगने वाला नारियल, मध्य भारत में निर्मित प्रसाद, उत्तर भारत में बनी थालियां आसानी से भक्तों को उपलब्ध हो जाती हैं। लेकिन, स्थानीय उत्पाद और स्थानीय फसलों से बना प्रसाद अब तक यात्रियों की पहुंच से दूर है। हालांकि यात्रा से पहले हर बार स्थानीय उत्पादों को यात्रा पड़ावों पर बिक्री के लिए रखने की सरकारी योजनाएं बनाई जाती हैं। लेकिन, अब तक ये योजनाएं धरातल पर नहीं उतर सकी हैं।
गंगोत्री धाम के प्रमुख पड़ावों में शामिल उपला टकनौर क्षेत्र में बंपर मात्रा में रामदाना (मारछा) का उत्पादन होता है। रामदाना का प्रयोग प्रसाद के रूप में पवित्र भी माना जाता है। ऐसे में रामदाना के लड्डू बनाकर मंदिर परिसर में यात्रियों को बेचने के लिए उपलब्ध करवाने पर उत्पादकों को इसका तीन गुना तक फायदा मिलेगा।।
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